यदि हम इस सच्चाई को जान लें कि परमात्मा हमारे भीतर है केवल मंदिर-मस्जिद में नहीं तो सारा वैमनस्य ही समाप्त हो जाये। मंदिर-मस्जिद तो हमने उसका नाम लेने के लिए एक विशेष स्थान के रूप में निर्मित किये हैं।
वह हमारे हृदयों में बसा है। हृदय के विशाल प्रांगण में जहां किसी प्रकार की धर्म सम्पदाय और जाति की दीवारें नहीं हैं, वहां हम सभी को, पूरी मानव जाति को विश्राम मिलता है, न जाति, न धर्म, न भाषा, न देश, न संस्कृति, नं रंग और न ही अन्य संकीर्ण विचारधाराओं का वहां कोई स्थान है।
एक बार.. केवल एक बार हृदय के धर्म को, हृदय के स्पन्दन को, हृदय की चेतना को अनुभव करके तो देखिए, उसकी आवाज को सुनकर तो देखिए..आपकी सभी समस्याओं का अन्त हो जायेगा। धर्म और ईश्वर के विषय में जो भ्रम हमने पाल रखे हैं, समाप्त हो जायेंगे, क्योंकि हृदय वह स्थान है, जहां मानवता की राह प्रकाशित होती है।
हृदय में स्थित कोमल भावनाओं में मानवता की सभी समस्याओं का समाधान हैं, जहां प्रश्न नहीं उत्तर ही उत्तर हैं, दूसरों के लिए प्रेम ही प्रेम है। दूसरों को देने का उस पर न्यौछावर हो जाने का भाव है। आवश्यकता भाव को जागृत करने की ही तो है।