आप एक ही नदी को दो बार पार नहीं कर सकते। जो पानी एक बार बह गया, बह गया। आप वहीं है, नदी के तट वहीं है, किन्तु पानी जिसे आपने पार किया था, उसका पता नहीं वह कितनी दूर जा चुका है।
ठीक वैसे ही है समय का अथवा जीवन का वर्तमान क्षण। वह अभी है, उसके पश्चात फिर कभी नहीं होगा। समय भी नदी के जल की भांति लगातार बह रहा है, यदि हम अभी चूक गये तो फिर सदा-सदा के लिए चूक जायेंगे। समय अनमोल है, उसके महत्व को उसके मूल्य को पहचानो।
जो वर्तमान है, वह कुछ ही क्षणों में भूतकाल हो जायेगा, जो समय के मूल्य को पहचान लेगा वह सदैव सतर्क रहेगा, सजग रहेगा, कर्मरत रहेगा। वह अकर्मण्य रहकर अनुकूल परिस्थितियों की प्रतीक्षा नहीं करेगा। समय के साथ चलेगा और वर्तमान का पूर्ण सदुपयोग करेगा। समय का सदुपयोग है सुकर्म करना, अपने उत्तरदायित्वों को निष्ठा से पालन करना। बुरे कर्मों में रत रहना समय का दुरूपयोग है, मूल्यवान मानव जीवन और मूल्यवान क्षणों को नष्ट करना है।
वेद कहता है कि हम सुकर्म करते हुए सौ वर्ष तक जिये हम शतायु होने की कामना करते हैं कि आयु पर्यन्त हम सत्कर्मों में सक्रिय रहें। एक प्रकार से हम प्रभु से काम का अधिकार मांगते हैं। चिन्तन की यह शैली हमें कर्मशीलता की प्रेरणा देती रहेगी, मन-वाणी और कर्म द्वारा कभी भी अधर्म की ओर नहीं जाने देगी।