कोई व्यभिचारी भी अपने घर में किसी दूसरे व्यभिचारी का आना पसंद नहीं करेगा। कोई चोर भी दूसरे चोर को अपने घर में प्रवेश नहीं होने देगा, जबकि वे स्वयं चोर हैं, व्यभिचारी हैं, परन्तु उन्हें अविश्वसनीय मानता है। भीतर ही भीतर उससे घृणा भी करता है। वह इनकी निकटता पसंद ही नहीं करता, क्योंकि उसे संदेह रहता है कि उनका वार उसी पर न हो जाये।
इस तथ्य के साथ कुकर्मी कोे यह जान लेना चाहिए कि दूसरे व्यक्ति भी तुम से घृणा करते होंगे, तुमसे बचना चाहते होंगे। इसलिए कुकर्म त्याग सुमार्ग को पकड़े। कुकर्म के मार्ग को त्यागने के लिए आत्म प्रताड़ना सबसे श्रेष्ठ उपाय है।
आत्म प्रताड़ना पाप मार्ग से हटने की एक अच्छी व्यवस्था है, क्योंकि पापी मनुष्य एक क्षण के लिए भी शान्ति अनुभव नहीं कर सकता। भीतर की प्रताड़ना बाहरी दंडों से अधिक प्रभावी होती है। आत्मग्लानि के कारण व्यक्ति उद्विग्न, एकाकी, नीरस विक्षिप्त बनता चला जाता है।
इसलिए आत्म अनुशासन में रहते हुए मन वाणी और कर्म से सभी को सत्कर्मों को ही करते रहना चाहिए। इसी से कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा। दूसरे भी आपको सम्मान की दृष्टि से देखना आरम्भ कर देंगे।