जन्म-जन्मान्तरों के अशुभ कर्मों के कारण मिले कष्टों और दुखों के निवारण हेतु मनुष्य जप-जाप तथा ईश्वर से प्रार्थना करता है।
कुछ लोग अपने पुरोहितों अथवा व्यावसायिक पंडितों से जप-जाप के अनुष्ठान सम्पन्न कराते हैं, किन्तु उन्हें यह स्मरण रखना चाहिए कि आस्था, धर्म, अध्यात्म, जप-जाप नितान्त व्यक्तिगत चीज है। दूसरों के द्वारा पूजा-पाठ कराना कोई सुफल दिलाने वाला नहीं है। ऐसी पूजा और ऐसा जप-जाप जिसमें आप स्वयं उपस्थित न हो किसी परम आस्थावान व्यक्ति को भी राहत दिलाने में समर्थ नहीं है। धर्म का क्षेत्र ही ऐसा है, जहां किसी के पुण्य का अथवा पाप का फल दूसरे को प्राप्त नहीं हो सकता।
पूर्व में किये गये कर्मों का फल अवश्य मिलेगा। अशुभ कर्मों का भूकम्प, तूफान, बाढ़, अग्निकांडों अथवा महामारी के रूप में मिलेगा, चाहे पीड़ित व्यक्ति को समाज अथवा शासन कितनी भी सहायता करें, परन्तु कष्ट पीड़ित प्राणियों को अपने कर्मों का पफल भुगतने के रूप में परमेश्वर के न्याय के सम्मुख सिर झुकाकर संतोष का घूंट पीना ही होगा।
प्रायः देखा जाता है कि कुछ जीव ऐसी भीषण विभिषकाओं में से भी सुरक्षित बच निकलते हैं, उनका बाल भी बांका नहीं होता। ऐसा उनके पुण्य कर्मों के कारण ही सम्भव होता है और इसे हम ईश्वर के चमत्कार की संज्ञा दे देते हैं।