Tuesday, November 5, 2024

अनमोल वचन

जब तक जीवन है, हमें कर्मशील बने रहना है। हम निष्क्रिय रह भी नहीं सकते, कर्म चाहे पापमय हो अथवा पुण्यकारी हो हम करते अवश्य हैं, परन्तु वह मार्ग पा लेना ही हमारी सफलता है कि हम कर्मों में लिप्त ही न हो जाये, क्योंकि लिप्तता बन्धन का कारण हो जाती है।

यदि हम इस सत्य को हृदय में उतार ले कि इस भौतिक जगत के कण-कण में वही स्वामी (परमात्मा) विद्यमान है। हम जो भी कर रहे हैं सेवक के रूप में कर रहे हैं, सेवक के रूप में कर रहे हैं। हम सबका स्वामी परमेश्वर है इसलिए हम जो कर रहे हैं उस सबका स्वामी भी वही है, क्योंकि स्वाभाविक रूप से सेवक के कार्य स्वामी को ही समर्पित होते हैं इसलिए ऐसा कोई भी कार्य न करे जो स्वामी (प्रभु) को पंसद न हो।

इस चिंतन के रहते कर्म करते हुए अहम भाव भी नहीं आ पायेगा। कर्म भी करते रहेंगे और कर्म का लेप भी नहीं होगा। इस प्रकार हमारा कर्म बन्धन का कारण भी नहीं बन पायेगा। पाप यदि बन्धन का कारण है तो पुण्य भी बन्धन का कारण ही है। बस ऐसे ही जैसे एक जंजीर लोहे तो एक सोने की है।

है तो दोनों जंजीरें ही। दोनों से ही बन्धन होगा। बन्धन से मुक्त करने वाला कर्म यदि कोई है तो स्वयं को पहचानना अपने प्रभु को पहचानना तथा उसके दिये ज्ञान के अनुरूप अपने कर्त्तव्यों को पूरा करना।

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