दया, परोपकार, उदारता, ममता, दानशीलता तथा कर्त्तव्य पारायणता ये मानवता के लक्षण है। जिस भी मनुष्य में इन भावों का इन लक्षणों का अभाव होता है वह नर साक्षात पशु समान है।
ऐसे अभागी मनुष्य अपने वर्तमान भाग्य को तो दुर्भाग्य में बदलते ही है, साथ ही आगामी जन्मों के भाग्य को भी बिगाड़ देते हैं। मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह केवल अपने विषय में ही न सोचे वरन पर हित के लिए भी कार्य करें, जिससे वह इस जीवन को तो संवार ही ले, आगामी जीवन भी उसका सुख सौभाग्य वाला हो जाये।
अन्न से दूसरों का पोषण करने वाले, जल से दूसरों की प्यास बुझाने वाले, फलदार एवं छायादार वृक्षों का बाग लगाने वाले, चिकित्सा के द्वारा निष्काम भाव से दूसरों की सेवा करने वाले व्यक्ति पुण्यात्मा होते हैं। वे बिना यज्ञ के भी स्वर्ग के भागी होते हैं।
यदि मन में करूणा नहीं, दया और प्रेम का भाव नहीं, माता-पिता, वृद्धों और गुरूजनों के प्रति श्रद्धा और सम्मान की भावना नहीं तो सब व्यर्थ है, जो केवल अपने और केवल अपनों के बारे में ही सोचता है वह निरा स्वार्थी है और स्वार्थी परमात्मा को कभी प्रिय नहीं हो सकते।