Tuesday, November 5, 2024

अनमोल वचन

हम प्रभु से विनती करते हैं कि ‘असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योर्तिगमय।’ अर्थात: ‘हे प्रभो मुझे असत्य से सत्य की ओर और अंधेरे से प्रकाश की ओर ले चल।

वास्तव में अज्ञान ही अंधकार है और असत्य भी। सच्चे अर्थों में ज्ञान ही सत्य है और ज्ञान ही प्रकाश है और मिथ्या ज्ञान तो अज्ञान से भी घातक है, दुख का हेतु है, विनाशक है।

मिथ्या ज्ञान क्या है? असत्य को सत्य, अपवित्र को पवित्र, अनित्य को नित्य, अपूज्य को पूज्य, दुख को सुख, अनात्मा को आत्मा जानना मिथ्या ज्ञान है, भ्रम है। भ्रमों में पड़कर मानव भटकता रहता है। अज्ञान के कारण उस पवित्र उद्देश्य को ही भूल जाता है, जिसके लिए यह मानव चोला मिला है।

मानव का प्रथम कर्त्तव्य है सत्य को जानना, उस पवित्र को जानकर आत्मा को तृप्त करना, परन्तु पवित्र को तभी जानोगे, जब स्वयं अपने अन्तःकरण से मिथ्या ज्ञान को निकालकर पवित्र बनोगे। जैसे गन्दे और अपवित्र पात्र में पवित्र खीर आदि भोजन नहीं डाले जा सकते और यदि डाले जायेंगे तो वे भी अपवित्र हो जायेंगे और खाने योग्य नहीं रह जायेंगे। ठीक उसी प्रकार जिस अन्तःकरण में काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, ईर्ष्या, द्वेष परनिंदा आदि की अपवित्रता भरी है, वहां पवित्र प्रभु कैसे निवास कर सकता है। इसलिए अपने अंतर को पवित्र बनाओ अन्यथा आपकी आत्मा अतृप्त ही रह जायेगी।

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