Wednesday, May 21, 2025

ऑपरेशन सिंदूर पर टिप्पणी को लेकर गिरफ्तार प्रोफेसर अली खान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट बुधवार को हरियाणा के सोनीपत में अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा। प्रोफेसर को हाल ही में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से संबंधित एक सोशल मीडिया पोस्ट के मामले में गिरफ्तार किया गया था। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ प्रोफेसर खान की ओर से दायर आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई करेगी।

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प्रोफेसर खान ने कहा है कि उनकी गिरफ्तारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उनके संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करती है। उन्होंने गिरफ्तारी को “असंवैधानिक, अनावश्यक और दमनकारी” बताते हुए तत्काल रिहाई और आरोपों को रद्द करने की मांग की है। प्रोफेसर महमूदाबाद को हरियाणा पुलिस ने पिछले हफ्ते गिरफ्तार किया था। जब उन्होंने जम्मू-कश्मीर में शुरू किए गए आतंकवाद-रोधी अभियान ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर आलोचनात्मक टिप्पणी पोस्ट की थी। मंगलवार को सोनीपत की एक अदालत ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

 

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महमूदाबाद के वकील ने कहा, “पुलिस ने उनकी रिमांड को सात दिन बढ़ाने की मांग की थी, लेकिन हमारे विरोध पर अदालत ने यह मांग ठुकरा दी और उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया।” प्रोफेसर का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और वकील लजफीर अहमद कर रहे हैं, जिन्होंने सोमवार (19 मई) को भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई के समक्ष मामले की तत्काल सुनवाई की मांग की थी।

 

 

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प्रोफेसर खान की कानूनी टीम के अनुसार, उन पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिसमें समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय अखंडता व संप्रभुता को खतरे में डालने वाले कृत्यों के आरोप शामिल हैं। वकीलों ने इन आरोपों को “निराधार” बताया है। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि राजनेताओं, पत्रकारों और यहां तक कि सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों ने भी ऑनलाइन ऐसी ही राय व्यक्त की है। हरियाणा पुलिस ने कहा कि गिरफ्तारी हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया की ओर से दायर एक एफआईआर के आधार पर की गई थी। दूसरी एफआईआर 17 मई को जठेडी गांव के सरपंच और भाजपा युवा मोर्चा के महासचिव योगेश जठेडी की तरफ से दर्ज कराई गई थी। इस मामले ने पूरे देश का ध्यान खींचा है और नागरिक स्वतंत्रता समूहों और शिक्षाविदों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इसके प्रभाव पर सवाल उठाए हैं।

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