तुम जो भी कर्म करो भगवान के लिए करो, उसी के निमित्त करो। ऐसा करोगे तो तुमसे कोई पाप नहीं हो पायेगा। सोचिए क्या झूठ बोलने से भगवान प्रसन्न होंगे? क्या किसी का अपमान करने से भगवान प्रसन्न होंगे? किसी की हानि कर किसी को पीड़ा पहुंचाकर, किसी का हक छीनकर क्या भगवान प्रसन्न होंगे? नहीं ना।
भगवान तो प्रसन्न होंगे यज्ञ, कर्म करने से, किसी की भलाई के लिए किये गये कर्म से। याद रखे कि हर शुभ कर्म यज्ञ कर्म है। पापों से बचना है तो इसी श्रेष्ठ मार्ग को अपनाओ। जो यज्ञ कर्म में रत है, उससे कभी पाप कर्म होगा ही नहीं। सदैव सत्कर्म ही होंगे।
यज्ञ का अर्थ है भगवान को अर्पित। ऐसे कर्म में आसक्ति नहीं होगी। जहां आसक्ति होगी, वहां आग्रह होगा। जहां आग्रह होगा, वहां परिताप होगा। परिताप होगा तो त्रुटियां होंगी, त्रुटियां होंगी तो क्रोध आयेगा। क्रोध आयेगा तो पुन: त्रुटियां होंगी। त्रुटि और क्रोध का क्रम बन जायेगा तो ऐसा कर्म यज्ञ कर्म रह ही नहीं पायेगा।