Friday, November 22, 2024

अनमोल वचन

मनुष्य के द्वारा जो कुछ भी दूसरों के लिए किया जाता है वस्तुत: वह अपने लिए ही किया गया कर्म है। वहां अच्छा हो अथवा बुरा हो, परमार्थ बुद्धि से जो कुछ भी किया जायेगा, जिस किसी के लिए भी किया जायेगा वह कई गुणा मात्रा में लौटकर उस करने वाले के पास ही पहुंचेगा।
तुम्हारी यह आकांक्षा वस्तुत: अपने आपको प्यार करने, श्रेष्ठ मानने और अपनी आत्मा के सामने समर्पण करने के रूप में ही विकसित होगी। वस्तुत: हमें दूसरों को हेय और छोटा मानने की भूल नहीं करनी चाहिए। दूसरों को भी श्रेष्ठ माने, केवल अपने को ही नहीं, किन्तु दूसरों को भी श्रेष्ठ और सुन्दर मानना उसी के लिए सम्भव है, जो भीतर से श्रेष्ठ है।
दूसरों के लिए शुभ सोचना, शुभ करना, दूसरों के भीतर की श्रेष्ठता को देखना प्रभु की राह में बढाया गया कदम है और दूसरों के लिए किया गया प्रत्येक शुभ कर्म अपनी आत्मिक प्रगति हेतु ही किया गया प्रयास है। गिरे हुओ को उठाना, पिछड़ों को आगे बढ़ाना, भटके को राह बताना, जो अशांत हैं उनकी शान्ति के लिए प्रयास करना वस्तुत: यही ईश्वर की सेवा है।
जब हम दुखी और दरिद्रों को देखकर व्यथित होते हैं, उनकी मलिनता को स्वच्छ करने को आगे बढ़त हैं, उनकी पीड़ा को दूर करने का प्रयास करते हैं तो समझो कि हम ईश्वर को पाने के लिए तप कर रहे हैं।
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