Sunday, April 20, 2025

अनमोल वचन

यह ज्ञान सामान्य से सामान्य व्यक्ति को है कि इस संसार का रचियता परमपिता परमात्मा है। वह इस पूरी कायनात का स्वामी है। उसका कुछ न कुछ अंश सभी जीवों में विद्यमान है। इसलिए किसी दुखी व्यक्ति का तिरस्कार, अपमान, उपेक्षा, उसका उपहास अथवा उन्हें किसी भी रूप में शारीरिक अथवा मानसिक पीड़ा देना परमात्मा के साथ उसी प्रकार का व्यवहार करना ही माना जायेगा।

यदि आप ऐसा कर रहे हैं तो आप कुछ भी हो, परन्तु परमात्मा के भक्त तो हो ही नहीं सकते। कितनी विचित्र बात है कि हम अपने दुखों से तो दुखी होते हैं, परन्तु दूसरों के दुखों से हमें कोई पीड़ा नहीं होती न किसी प्रकार का करूणा का भाव जागता है, बल्कि कभी-कभी तो हम दूसरों के दुखों और कष्टों को अपना सुख बना लेते हैं, उसी में अपनी संतुष्टि और खुशी ढूंढते हैं।

ऐसी दशा में हम मनुष्य कहलाने के अधिकारी नहीं हो सकते तो फिर हम साधक कैसे बनेंगे, हममें देवत्व का गुण कहा से आयेगा। याद रखे कि हम दूसरों का दुख भले ही न मिटा सके। परिस्थितियों की बाध्यता के कारण उनकी कुछ सहायता भी न कर सके तो कोई बात नहीं, परन्तु दूसरों के दुखों को देखकर हमारा हृदय पसीज उठे, करूणा जागे, कम से कम इतनी सहानुभूति का भाव तो हमारे मन में होना ही चाहिए।

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