मोक्ष प्राप्ति अर्थात आवागमन से, जीवन-मरण से मुक्ति। जीवन में सभी मोक्ष चाहते हैं। प्रत्येक प्राणी में मोक्ष की, मुक्ति की कामना होती है, परन्तु मोक्ष प्राप्त उन्हीं को होता है, जो सांसारिक लालसाओं से निर्लिप्त हो चुके है, किन्तु जो असंख्य योनियों में भ्रमण के पश्चात अनेक पुण्यों से प्राप्त इस दुर्लभ मानव योनि को पाप कर्मों में नष्ट कर देते हैं, उनके लिए मोक्ष की कल्पना कैसे की जा सकती है। तुम अकेले आये हो, अकेले ही जाना भी होगा। जो भी भौतिक सम्पदा जीते जी संग्रह की है, उसमें से कुछ भी साथ नहीं जायेगा। इस सच्चाई को जानते भी सभी है, एक-दूसरे को इस यथार्थ का दर्शन भी लगभग सभी कराते हैं, फिर भी संग्रह करने में लगे हैं। हे अज्ञानी मानव तृष्णा ने तुम्हें अंधा बना दिया है। वह तो बढ़ती रहेगी। कभी समाप्त भी नहीं होगी, किन्तु एक समय ऐसा भी आयेगा, जब यह संग्रह वृत्ति ही भार बन जायेगी। यह तुम्हें संसार के कुचक्रों में ही डुबो देगी, क्योंकि हल्की वस्तु तैरती है और भारी वस्तु डूब जाती है। तुमने तो संग्रह करने में पाप-पुण्य का भेद ही नहीं किया। पाप की गठरी को धन संग्रह की गठरी से भी भारी बना लिया है फिर तो डूबना ही डूबना है। ऐसे में मोक्ष प्राप्ति का विचार भी कैसे आयेगा?