श्रम को सर्वोपरि मानने वाले वेद के ऋषि ने अर्थववेद में इस ऋचा की रचना की ‘कृत में दक्षिणे हस्ते जयो में सव्य आहित: अर्थात पुरूषार्थ मेरे दांये हाथ में है, तो सफलता मेरे बांये हाथ का खेल है। गणित सीधा-सादा है कि जो कठिन परिश्रम करते हैं ईश्वर उनका सच्चा साथी बनकर उनका प्रत्येक कार्य सिद्ध करते है।
कठिन परिश्रम और उत्तम कर्म ही मनुष्यता का सच्चा मार्ग है। ऐसी सीख देने वाले जिन ऋषियों ने प्रभु प्रदत ज्ञान के द्वारा वेदों की रचना की, उन महान ऋषियों के वंशज हम आज आराम परस्ती, सुस्ती, स्वार्थपरता, काहिली, काम चोरी, छल-कपट और धूर्तता को ही कब कैसे और क्यों महत्व देने लगे ?
स्वयं विचार कीजिए यदि समाज और राष्ट्र को उन्नति की राह पर ले जाना है, तो हम सभी को निष्ठा और ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों का निर्वह्न करना ही होगा।
शास्त्र हमें सिखाते हैं ‘अन्यायेन तृणश्लाकाऽपि गृहीता दु:खायते अर्थात अन्याय से किसी का तृण (तिनके) का छोटा भाग भी लिया हो तो दुख कारक बनता है फिर ठगी क्यों? भले-बुरे का विवक क्यों नहीं? स्वयं विचार कीजिए, क्योंकि जागरूकता हमारे स्वयं के जागने से आयेगी।