भौतिक सुख साधन शरीर को तो तृप्त कर सकते हैं, परन्तु आत्मा की भूख को ये साधन तृप्त करने में असमर्थ हैं। भौतिक पदार्थों का सम्बन्ध प्रकृत्ति से है, जबकि आत्मा का सम्बन्ध परमात्मा से है। भौतिक पदार्थ नाश्वान है, जबकि आत्मा को तृप्त करने हेतु किये गये साधन शाश्वत हैं। आत्मलोक में विचरण करने वाला व्यक्ति भौतिक पदार्थों की ओर आकर्षित नहीं होता। वह जीवन को जीता है, नैतिक मूल्यों को महत्व देता है, चिंतन करता है। पवित्र भावनाएं ही उसकी सम्पत्ति है। वह साधारण व्यक्तियों से श्रेष्ठ होता है, उसका हृदय निष्पाप होता है, क्योंकि मन को उसने काबू में कर लिया है। जीवन के यथार्थ को उसने जान लिया है। भौतिकता समाज में आपसी द्वेष, ईर्ष्या और भेद पैदा करती है, जबकि आध्यात्म समाज को जोड़ता है। भौतिकता ने धन एकत्र करने की प्रतिस्पर्धा पैदा कर दी है। मानव की शान्ति समाप्त हो गई है। विचार कुंठित हो गये हैं, दिलों में दूरियां बढ गई है। हम एक दूसरे से भय खाने लगे हैं। यदि आदमी को सुख-शान्ति और प्रेम के साथ चिंता रहित रहकर जीना है तो आध्यात्म के मार्ग पर जाना ही होगा। आध्यात्म ही व्यक्तियों को हृदय से जोड़ता है, क्योंकि आध्यात्मिक व्यक्ति का हृदय प्रेम से परिपूर्ण होता है।