पापी कौन? पापी वह है जो अपने पापों के लिए प्रायश्चित नहीं करता, जो पाप को पाप ही नहीं मानता। पाप कर्मों में ही रच-बस जाता है, किन्तु जो पाप को जान लेता है पूर्व में किये गये पापों का प्रायश्चित कर लेता है। प्रभु से क्षमा मांग लेता है। आगे पाप न करने की शपथ ले लेता है तो वह शुद्ध हो जाता है। उसे प्रभु अपनी शरण में ले लेते हैं, किन्तु पापी जन्म दर जन्म भटकता रहता है। जीवन भर व्यक्ति का जैसा चिंतन रहेगा स्वाभाविक रूप से मृत्यु के समय भी वह उसी प्रकार के भाव रखेगा। शरीर त्याग कर भी उसी भाव में रमण करता रहेगा।
जो श्रेष्ठ पुरूष परमेश्वर के चिंतन का निरन्तर अभ्यास करते हुए मृत्यु समय उसी का स्मरण रखते है, वे उस दिव्य प्रकाश अर्थात परमात्मा को पा ही लेते हैं। झूठे, कपटी, लम्पट व्यक्ति का चित्त अशुद्ध होता है। जीवन भर उसी का अभ्यासी हो जाने के कारण मृत्यु के समय भी उसके वही भाव रहते हैं। चित्त की अशुद्धि प्रभु मिलन में बाधक है, क्योंकि परमात्मा सत्य स्वरूप है। झूठ बोलने, झूठा व्यवहार करने वाले को उसकी प्राप्ति तो दूर रही, बलिक प्रभु में उसकी रूचि भी नहीं होगी। कामी अथवा क्रोधी को तो परमात्मा मिल सकते हैं, क्योंकि काम क्रोध तो आवेग है स्वाभाविक ही आते हैं और आकर चले भी जाते हैं, परन्तु झूठ कपट तो व्यक्ति के रक्त में समा जाता है।