आज महावीर जयंती है। भगवान महावीर ने सर्वाधिक महत्व हिंसा के त्याग और अहिंसा को जीवन में अपनाने को दिया है। इसलिए इन पर विवेचना करना प्रासांगिक होगा। हिंसा किसी के प्राण ले लेना और अहिंसा किसी को न मारना ही के अर्थों में नहीं आता। मन, वचन और कर्म के द्वारा गन्दी मनोवृत्तियों के साथ किसी प्राणी को मानसिक या शारीरिक हानि अथवा पीड़ा पहुंचाना हिंसा है और समस्त प्राणियों के हित के लिए मन, वचन और कर्म के द्वारा पवित्र मनोवृत्ति से कार्य करना अहिंसा है।
अहिंसा के अर्थ यह नहीं है कि भीरू, कायर और निर्बल की भांति अत्याचार सहन करते चले जाये, अहिंसा यह भी नहीं कि धर्म जाति और देश पर आक्रमण करने वालों के आगे हाथ जोड़े जाये। न ही अहिंसा यह है कि यदि अत्याचारी, डाकू, पापी लोग अबलाओं पर अत्याचार कर रहे हों, माताओं को अपमानित कर रहे हों, धन सम्पत्ति लूट रहे हों, भयभीत जनता को उनके घरों से निकाल कर स्वयं उन पर अधिकार जमा रहे हों, तो हम कायरों की भांति खड़े-खड़े देखते रहे।
अहिंसा यह भी नहीं कि कोई पागल अपने शस्त्र से अपने को और दूसरों को घायल कर रहा हो तो भी उसका शस्त्र न छीनो। यदि कोई व्यक्ति ऐसी बातों को अहिंसा कहता है तो वह शास्त्र के महत्व को किंचित भी नहीं समझता।