कुछ कर्म करने से पहले व्यक्ति विचार करता है कि मुझे क्या करना है? वे विचार ही कर्म में परिणित होते हैं। उन किये गये कर्मों के आधार पर ही व्यक्ति के संस्कार बनते हैं। संस्कार कर्मों के अनुसार सुसंस्कार भी हो सकते हैं और कुसंस्कार भी। यदि वे कुसंस्कार हुए तो भोग की ओर ले जाते हैं।
भोग से रोग उत्पन्न होते हैं। रोग से क्लेश, पीड़ा, धन, हानि और फिर शीघ्र ही असमय मृत्यु। इसलिए अपने विचारों को श्रेष्ठ बनाओ, बुद्धि को पवित्र रखो। स्वयं अच्छे कार्य करो और दूसरों को भी अच्छे मार्ग पर लगाओ, उन्हें भी सत्कर्म करने की प्रेरणा देते रहे।
उससे आपका यह जन्म तो सुधरेगा ही परलोक भी निश्चित ही सुधरेगा। जन्म जन्मातरों के कुसंस्कारों के आधार पर मिले कष्टों या दुखों के निवारण हेतु हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं, किन्तु हमें यह विचार भी करना चाहिए कि जो कर्म पूर्व जन्मों में किये गये उनका फल तो हमें अवश्य ही भोगना होगा।
आगे के लिए तो हम अपने पूर्व के संस्कारों को अपने शुभ कर्मों के द्वारा नष्ट कर दें और सुसंस्कारित होकर प्रभु के दरबार में जायें ताकि अगले जन्म में तो दुख और क्लेशों का सामना न करना पड़े।