जीवन मिला है तो सुख भी मिलेंगे और दुख भी मिलेंगे। सुख-दुख दोनों का जीवन में आना स्वभाविक है, परन्तु सुख के दिनों में हमें अधिक हर्षित नहीं होना चाहिए और दुख के दिनों में शोक नहीं करना चाहिए, क्योंकि दुखों के समय बुरी वस्तु अर्थात पापों का नाश हो रहा है।
सुख के दिनों अधिक हर्षित इसलिए नहीं होना चाहिए कि हमारे पुण्य कर्म समाप्त हो रहे हैं। जैसे रात के बाद दिन आता है, वैसे ही दुख समाप्त होने पर सुख अवश्य आयेगा। सुख दुख को प्रारब्ध एवं अपने प्यारे प्रभु का बनाया हुआ विधान समझकर शांत रहो।
विवेकी मनुष्य तो वह है जो आये हुए दुख को मन ही मन पी जाते हैं और सुख की डकार भी किसी के सामने नहीं लेते। अपना दुख किसी के सामने प्रकट नहीं करते। विवेकी तो सहर्ष दुख को गले लगाता है।
दोनों भुजाएं उठाकर ”आओ प्यारे तुम तो संसार को मापने की उत्तम कसौटी हो, तुम्हारे द्वारा ही तो इन बनावटी सम्बन्धियों के ढोल की पोल खुलती है, क्योंकि दुख के समय अपना कहलाने वाले भी प्राय: साथ छोड़ जाते हैं।” आज के युग में दुखी व्यक्ति से लोग बचकर निकलते हैं केवल इसलिए कि कहीं कोई सहायता न मांग ले?