सौभाग्य तथा दुर्भाग्य ये दोनों शब्द व्यक्ति की दुर्बलता को दर्शाते हैं। पुरूषार्थ ही सबके लिए निर्णायक हैं। पुरूषार्थ से ही भाग्य का उदय होता है। भाग्यशाली बनना है तो पुरूषार्थ कीजिए। हाथों की सुन्दरता दान से है, कंगन पहनने से नहीं। शरीर की शुद्धि स्नान करने से होगी केवल चंदन लेपने से कुछ नहीं होगा।
तृप्ति मान-सम्मान से प्राप्त होगी, भोजन से केवल क्षुधा शांत होगी। सत्संग का लाभ आचरण से होगा मात्र श्रवण करने से कुछ नहीं होगा। ईश्वर प्राप्ति के तीन मार्ग है भक्ति मार्ग, कर्म मार्ग और ज्ञान मार्ग। भक्ति मार्ग पर चलकर ईश्वरीय शक्ति का अनुभव करो, कर्म को पूजा का स्थान दो। निष्काम कर्म योगी बन सत्कर्म करते हुए अपने लिए स्वर्ग में धन एकत्र करो अर्थात ऐसे ऊंचे कर्म करो ताकि अगले जन्म में उच्च स्तरीय ऐश्वर्य प्राप्त हो।
ज्ञान मार्ग पर चलकर प्रभु के सच्चे स्वरूप की पहचान करो, क्योंकि ज्ञान के अभाव में हमारी साधना अधूरी रहेगी। बिना श्रद्धा के किया गया यज्ञ, दिया हुआ दान, तपा हुआ तप और कुछ भी किया गया कर्म निष्फल रहते हैं, लाभ किसी को भी नहीं पहुंचाते। श्रद्धा श्रेष्ठ तप है, श्रद्धा में शक्ति है। श्रद्धा हो तो माता-पिता में भी परमात्मा के दर्शन किये जा सकते हैं। श्रद्धा रहित अज्ञानी व्यक्ति तो परमात्मा के अस्तित्व को ही नकारने में संकोच नहीं करता।