जो समाज धन को मान्यता देता है वह सभी प्रकार के पाप और अपराध को मान्यता दे देता है। जब धन को प्रतिष्ठा मिलेगी तो यह विचार गौण हो जाता है कि धन किन साधनों से अर्जित किया गया है। भारतीय जन जीवन में और सरकारी कामकाजी क्षेत्र में जो नहीं मिल रहा है वह ‘चरित्र परन्तु धन के बल से सब कुछ मिल रहा है।
देश की स्वतंत्रता से पहले सामाजिक और नैतिक मूल्यों का इतना हृास नहीं हुआ था, जितना स्वतंत्रता के आठ दशक बीतते-बीतते देखने को मिल रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण रहा है कि प्राथमिक शिक्षा से ही बच्चों को नैतिक शिक्षा का पाठ नहीं पढाया गया।
नैतिक शिक्षा को धर्म निरपेक्षता का विरोधी मान लिया गया। कानून अपना काम करता है, पर क्या बड़े कानून बनाने से अपराध रूक गये हैं। जब तक बच्चों को नैतिक शिक्षा के माध्यम से शिक्षित नहीं किया जायेगा, परिणाम अच्छे नहीं आयेंगे। शिक्षा के मंदिरों में वातावरण ऐसा बने कि देश की जो पीढी शिक्षित होकर कर्म क्षेत्र में आगे बढे वह इतनी सच्चरित्र हो कि अपराध की सोच ही न पाये, वर्तमान में स्थिति यह है कि आज जनता तो मेहनती भी है, समाज, ईश्वर और कानून से भी डरती है, परन्तु जिस वर्ग को धन-बल, बाहुबल एवं राजनेताओं की सत्ता के बल से किसी भी क्षेत्र में शिखर प्राप्त हो जाते हैं वे निडर होकर अपना भय दिखाकर सत्ता और धन दोनों प्राप्त करते हैं।