Saturday, November 2, 2024

अनमोल वचन

किसी कवि ने नारी की प्रतिष्ठा में कितना सुन्दर लिखा है ‘नारी निंदा मत करो, नारी नर की खान, नारी से नर प्रकट भये राम-कृष्ण भगवान।’

यह उपदेश पुरूष गृहस्थ के लिए है, किन्तु सद्गृहस्थ को एक दूसरे की आलोचना नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने पर उनकी परस्पर की समीपता दूर होती जायेगी। समीपता दूर होने से परस्पर एक दूसरे के प्रति सद्भावना तथा प्रेम कम होता जायेगा और यदि आपस में प्रेम ही नहीं रहा तो गृहस्थ जीवन किस काम का। ऐसा गृहस्थ तो नरक के समान है।

वास्तव में स्त्री-पुरूष तो संसार में केवल वही है, जिसके साथ लोक मर्यादा और सामाजिक परम्पराओं के अनुसार विवाह सम्बन्ध हुआ है, जो पति-पत्नी के रूप में है, शेष तो सब पिता, भाई, पुत्र, माता, बहन, बेटी है। अत: स्त्री शरीर धारियों को चाहिए कि वे अपने पति के अतिरिक्त पर पुरूष यदि अपनी अवस्था से अधिक अवस्था के हो तो पिता तुल्य समझे, पिता की दृष्टि से देखें। समान अवस्था के हो तो भाई तुल्य और कम अवस्था के हो तो पुत्र तुल्य समझे और उसी दृष्टि से देखें। वैसे ही पुरूषों को भी चाहिए कि वे अपनी विवाहिता पत्नी को ही स्त्री समझे शेष अन्य को देवियां। अपने से अधिक अवस्था को माता की दृष्टि से, समान अवस्था की हो तो बहन तुल्य और कम अवस्था की हो तो पुत्री तुल्य समझे और उसी दृष्टि से देखें। यदि ऐसी सबकी भावना हो तो यह पृथ्वी स्वर्ग तुल्य हो जाये।

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