एक प्रसिद्ध कहावत है ‘यथा राजा तथा प्रजा’। यह केवल आज नहीं युगो-युगो से सिद्ध है। भगवान कृष्ण ने भी गीता में कहा था कि किसी भी युग के श्रेष्ठ लोग जिस पथ पर चलते हैं उसी का अनुसरण समाज करता है।
यह भी स्वीकार किया गया है कि राजा ‘मुख जैसा होना चाहिए जो भोजन को लेने के बाद शरीर के सभी अंगों का सही पोषण करे’ अर्थात शासक ऐसा चाहिए जो समाज के सभी वर्गों, सम्प्रदायों, गरीब-अमीर के हितों का समान रूप से संरक्षण करे, परन्तु दुख के साथ कहना पड़ता है कि देश के सभी प्रांतों में सरकारों की ऐसी स्थिति नहीं है।
जनता के दुख-दर्द को दूर करने के सापेक्ष अपने वेतन भत्तों और अन्य सुविधाओं को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि प्राथमिकता जन कल्याण के कार्यों को दी जानी चाहिए। इसका मुख्य कारण है राष्ट्रीय चरित्र का अभाव है, जिसके दामन पर दाग नहीं ऐसे राजनेता बिरले ही मिल पाते हैं।
राष्ट्रीय चरित्र ऊंचा कैसे हो? इसके लिए हमें अपने बच्चों को प्राथमिक पाठशाला से ही नैतिक शिक्षा के पाठ पढ़ाने चाहिए, जब तक त्यागी, तपस्वी, सच्चरित्र और ईमानदार रहे नेताओं और समाज सुधारको की जीवनियां कम से कम माध्यमिक शिक्षा तक नहीं पढायेंगे, तब तक वे कैसे राष्ट्रभक्त और सच्चरित्र बन पायेंगे। जो अबोध और किशोर यह जानते हैं कि उनके पिता ने मोटी रकम देकर उन्हें स्कूल-कॉलेज में प्रवेश दिलाया है वह धीरे-धीरे यह भी जान लेता है कि यह रकम पिता को कहां से मिली।