यह तथ्य सभी जानते हैं कि जो दुख-सुख जीवों को प्राप्त हो रहा है वह उनके पूर्व में किये गये कर्मों का ही फल है। कोई किसी को दुख नहीं देता दूसरे को दुख प्राप्त होने में केवल निमित्त बनता है। दूसरा कोई दुख सुख दे ही नहीं सकता।
हमारे पूर्व में किये कर्मों के कारण परमात्मा की व्यवस्था के अनुसार यह स्वत: ही घटित होता रहता है, जिससे हम सुख का अनुभव करे या दुख का। जब हमें यह तथ्य समझ में आ जायेगा तो जिसके कारण अथवा जिस व्यक्ति के द्वारा हमें दुख दिया जा रहा है तो उसके प्रति कोई नाराजगी नहीं होनी चाहिए।
हां जिससे हमें सुख मिल रहा है शिष्टाचारवश उसका धन्यवाद अवश्य करना चाहिए। दुख कोई नहीं चाहता सभी सुख चाहते हैं। यह जानते हुए भी कि दुख किन कर्मों का फल है नादान इंसान जानते-बूझते भी ऐसे बुरे कर्म ही करता है और दुख भोगते हुए दूसरों को दोष देता है। कभी-कभी तो उन दुखों के लिए परमात्मा को भी कोसने से बाज नहीं आता, परन्तु स्वयं को सुधारना नहीं चाहता।