प्रसन्न व्यक्ति बहुधा ऊंचे व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं। प्रसन्न व्यक्ति के प्रकंपन सुखद होते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि प्रसन्न व्यक्ति के भीतर से जो तरंगे निकलती हैं वे वातावरण को सुखद बना देती है। उसके निकट के व्यक्ति के मन का बोझ हल्का हो जाता है।
सार यही है कि मैं हंसता हूं तो सारा संसार हंसता हुआ प्रतीत होता है। यहां तक कि मृत शरीर भी उसे हंसता खिलता दिखाई देता है। इसी गुण से तनाव मुक्त जीवन जिया जा सकता है। थामस एलवा एडिसन ने ठीक कहा है कि मनुष्य कम से कम इतना बुद्धिमान न हो जाये कि वह हंसने जैसी महान खुशी से वंचित रह जाये।
प्रसन्नता व्यक्ति की कार्य कुशलता और क्षमता का विकास करती है और वह कर्म के साथ स्फूर्ति और संतुलन बनाये रखती है। थकान मिटाने का एक बहुत बड़ा उपाय है प्रसन्नता। यह गुण व्यक्ति के खालीपन को भरकर उसके व्यक्तित्व का तरोताजा बना देता है, उसकी योग्यता को बढ़ाता है।
उत्तेजना, शोक, बुरे विचार तथा नकारात्मकता से बचाकर व्यक्ति को सहज शान्ति से भर देता है। इसलिए प्रसन्नता जीवन की सबसे मूल्यवान उपलब्धि है। इसलिए परिस्थितियां अनुकूल हों या प्रतिकूल सदैव प्रसन्न रहे, क्योंकि प्रसन्न रहकर ही जीवन का सच्चा आनन्द उठाया जा सकता है।