प्रत्येक व्यक्ति आनन्द की चाहत रखता है, किन्तु आनन्द की अवस्था का निर्माण किसी और के द्वारा न होकर उस व्यक्ति विशेष द्वारा ही सम्भव है। इस दिशा में बढने का प्रथम कदम अतीत के उन अंशो को भूलने का प्रयत्न करना है, जो अपने साथ अनुताप, अपराध और विफलता की भावना लाया करते हैं। ऐसे में मन को समझाये कि अतीत गत हो चुका है, अतीत की भूलों के सम्बन्ध में इस समय कुछ नहीं किया जा सकता। उनका चिंतन करते रहने से समय और शक्ति ही नष्ट नहीं होगी, बल्कि निराशा हावी होने लगेगी। भूल किसी से भी हो सकती है, किन्तु वह ऐसा अवसर है, जो आपको कुछ सीखने और विकास करने की प्रेरणा देता है, इसका पश्चाताप न कर उसे शिक्षाप्रद रूप में देखिए। जिसे आप विफलता मान रहे हैं वह आपके लिए शिक्षाप्रद अनुभव बन जायेगा। इस प्रकार भविष्य की ओर दृष्टि डालने और उसके लिए समुचित तैयारी करने में प्रवृत हो जाये। अतीत में की गई भूलों की पुनरावृत्ति न हो यह सावधानी बहुत जरूरी है। सफलता आपके कदम चूमेगी और आप असीम आनन्द का अनुभाव भी करेंगे।