Thursday, February 13, 2025

अनमोल वचन

वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब भरत श्रीराम को अयोध्या वापिस लौटने की विनती करते हैं, बार-बार कहते हैं अपनी माता कैकयी को कोसते हैं तो राम शांत भाव से कहते हैं ‘भरत तुम मुझे कुलीन, सत्यनिष्ठ, गुणी और आचारवान मानते हो तो फिर पिता की आज्ञा का उल्लंघन करने को कैसे कहते हो? मुझे तुम्हारे भीतर कोई दोष नहीं दिखता, किन्तु तुम्हारे द्वारा माता की निंदा भी शोभा नहीं देती। आगे श्रीराम कहते हैं कि जीव ईश्वर के समान नहीं, इसलिए अपनी इच्छा से न कुछ करता है न कुछ कर सकता है, वह तो काल के साथ बहता है। समस्त संग्रहों का अन्त विछिन्न होना है, सभी उन्नतियों का अंत पतन है, सभी संयोगों का अंत वियोग है और सभी के जीवन की समाप्ति मृत्यु है। जैसे समुद्र में तैरते हुए काठ के दो टुकडे कभी आपस में मिल जाते हैं फिर कुछ देर में अलग हो जाते हैं, उसी प्रकार संसार में पत्नी, पुत्र, कुटम्ब और धन-दौलत भी मिलते हें और विछुड़ते हैं। इस शाश्वत सत्य के बाद तुम्हें दुख और शोक का त्याग कर स्वस्थ और सामान्य हो जाना चाहिए। अपना कर्तव्य समझते हुए अयोध्या का राज चलाना चाहिए।

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