भारत में लगभग सभी मतावलम्बी रहते हैं। भिन्न-भिन्न मान्यताओं वालों में आपसी झगड़ों की बात भी सुनी जाती रहती है। एक और धर्म को गुणों का भंडार माना जाता है, दूसरी ओर अनेकों झगड़ों की जड़ भी इसे ही माना जाने लगा है। हमें यह विचारना है कि हम जिसको धर्म मानते हैं वह कहीं केवल बाहर की सजावटों, बाहर की बनावटों अथवा बाहर के पदार्थों तक ही सीमित नहीं। वास्तव में धर्म तो एक ही होता है। आध्यात्म के मार्ग में भिन्न-भिन्न धर्म हो ही नहीं सकते। एक ही धर्म होता है, वह है मानव धर्म। परमात्मा को जानकर प्रत्येक इंसान प्रत्येक जीव के साथ प्यार करना ही धर्म है। सम्प्रदाय अनेक हो सकते हैं, परन्तु धर्म केवल एक ही है। मानवों की एक ही जाति है मानव जाति और धर्म एक है मानव धर्म या मानवता का धर्म। जब बच्चा पैदा होता है, उस पर कोई चिन्ह नहीं होता, जो यह बताये कि यह फला धर्म या जाति का है। प्रभु पक्षियों की जातियां होती हैं, उन्हें हमारी आंखे पहचान सकती है कि गाय है, भैंस है, ऊंट है या बकरी परन्तु इंसान की पहचान केवल इंसान ही है। प्रत्येक इंसान में यही एक नूर (ब्रह्म तत्व) वास करता है। इसलिए इंसानों वाला जन्म प्राप्त करके कर्म भी इंसानों वाले ही करें, राक्षसों वाले नहीं।