किसी अपने की मृत्यु होती है तो दुख होना स्वाभाविक है। कुटम्बी और सम्बन्धी कितने भी दुखी हो कितना भी शोक मनाये जाने वाला तो लौटकर आने वाला नहीं है। सभी इस सच्चाई को जानते हैं। अपने मन को सांत्वना देने के लिए हमें इस सत्य को याद रखना चाहिए कि आत्मा अमर है। मृत्यु शरीर की होती है, आत्मा की नहीं। वह आत्मा जिसने शरीर त्याग दिया कहीं न कहीं विद्यमान है। उसका केवल आपसे सम्बन्ध विच्छेद हुआ है। इसलिए उसके लिए विलाप करने की अपेक्षा उस आत्मा की शान्ति के लिए मंगलमय प्रभु से प्रार्थना करें कि वह अच्छे कुल में अपना नया शरीर धारण करें, उसे परलोक में हर प्रकार से शान्ति प्राप्त हो। अपना आगे का जीवन सुखमय बनाये रखने के लिए ममता को चित्त से हटाने का प्रयास करें। उसके नाम पर दीन-हीनों को दान दो, उसकी कीर्ति को अमर बनाने के लिए कोई रचनात्मक तथा लोक हितैषी कार्य की स्थापना करो। कोई अनाथालय, वृद्धाश्रम, कन्याओं के लिए विद्यालय, चैरेटेबिल अस्पताल अथवा जैसी भी क्षमता हो उसके अनुसार कोई भी कार्य कराओ। यही उस आत्मा के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।