आज से पितृपक्ष प्रारम्भ है। संसार में केवल सनातन को मानने वाले ही इस पक्ष में अपने पितरों को उनकी मृत्यु के दिन की तिथियों पर उनका श्राद्ध करते हैं। उनके नाम पर दान आदि पुण्य कार्य करते हैं। यह एक अच्छी परम्परा है, क्योंकि दुनियादारी की आपाधापी में जहां लोगों को किसी को याद करने की ‘फुर्सत’ ही नहीं वे इस दिन पर तो वे अपने पूर्वजों का स्मरण करने का पुनीत कार्य कर ही लेते हैं तथा इस निमित्त उनके द्वारा कुछ दान उनके नाम से कर देते हैं। कवि ने पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए अपनी भावनाओं को इस प्रकार व्यक्त किया है।
धन्यवाद अपने पितरों का इस धरा पर तभी मैं आ पाया…
उनके अनगिनत बलिदानों से मैंने यह तन-मन पाया।
मुगलों की तलवार के आगे जिनका शीश न झुक पाया…
रहे जूझते उनके खिलाफ पर धर्मान्तरण न करवाया।
मुगलों के बाद अंग्रेजों ने भी कितना कहर था बरपाया…
धन्य-धन्य है मेरे पूर्वज अपना अस्तित्व नहीं झुठलाया।
कितने जुल्म अत्याचार सहे पथ से तनिक न डिग पाया…
निर्भर शूरवीर वो भिड़ गये गैरो का साया न पड़ पाया।
कितने मंदिर ध्वस्त हो गये विश्वास मगर न डिग पाया…
कितनी विकट रही होगी राहे क्रूर शासकों से टकराया।
उनके धैर्य त्याग साहस से आज पिंडदान मैं कर पाया…
पितरों का श्राद्ध तर्पण करने श्रद्धा से पितृ पक्ष मनवाया।
धन्यवाद अपने पितरों का इस धरा पर तभी मैं आ पाया…
उनके अनगिनत बलिदानों से मैंने यह तन-मन पाया।
मुगलों की तलवार के आगे जिनका शीश न झुक पाया…
रहे जूझते उनके खिलाफ पर धर्मान्तरण न करवाया।
मुगलों के बाद अंग्रेजों ने भी कितना कहर था बरपाया…
धन्य-धन्य है मेरे पूर्वज अपना अस्तित्व नहीं झुठलाया।
कितने जुल्म अत्याचार सहे पथ से तनिक न डिग पाया…
निर्भर शूरवीर वो भिड़ गये गैरो का साया न पड़ पाया।
कितने मंदिर ध्वस्त हो गये विश्वास मगर न डिग पाया…
कितनी विकट रही होगी राहे क्रूर शासकों से टकराया।
उनके धैर्य त्याग साहस से आज पिंडदान मैं कर पाया…
पितरों का श्राद्ध तर्पण करने श्रद्धा से पितृ पक्ष मनवाया।