मनुष्य का अंतिम लक्ष्य होता है परमात्मा की प्राप्ति, परन्तु उसे पाने के मार्ग में सबसे बड़ी रूकावट है अहंकार। यह अहंकार रूपी रोग हमें कई कारणों से हो सकता है।
यदि हमें ईश्वर ने पर्याप्त धन सम्पत्ति दे दी तो हमें अपने धनवान होने का अहंकार हो गया। हमसे जो कम धन सम्पत्ति वाले हैं, उन्हें अपने से हेय समझने लगते हैं। हमें अपनी डिग्रियों के कारण ज्ञान का अभिमान होने लगता है। हम समझते हैं हम अपने सहकर्मियों अथवा समाज में अपने निकटवर्तियों से अधिक ज्ञान रखते हैं। हम स्वयं को ज्ञान का स्रोत समझने लगते हैं। अपने को अधिक बुद्धिमान समझकर हम सीधे-सादे सादगी पसंद लोगों को ठेस पहुंचाते हैं। उन्हें दर्शाते हैं कि हम उनसे अधिक जानकारी और अधिक ज्ञान रखते हैं।
हमारी सुन्दरता भी हमारे अन्दर घमंड पैदा करती हैं। अपने रंग रूप के द्वारा हम स्वयं को वैसा दिखाने का प्रयास करते हैं, जैसे हम नहीं हैं। इससे हानि हमें ही होती है, क्योंकि जब हमारा सारा ध्यान अपने बाहरी रूप, अपने शरीर व्यक्तित्व और धन सम्पत्ति पर लगा होता है तो हम अपनी आत्मा पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकते।
हमारी आत्मा सम्पूर्ण सुन्दरता, ज्ञान और धन दौलत की स्रोत है, परन्तु जब तक हम शरीर और मन का चिंतन करते रहते हैं, तब तक इन सांसारिक खजानों में लिप्त रहते हैं। दुनिया में जितने भी ये बाहरी खजाने हैं, एक दिन हमें छोड़ देंगे और हम दुनिया से खाली हाथ चले जायेंगे।