व्यक्ति को जीवन में कभी निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि जीवन जीने के लिए आशावादिता के अतिरिक्त कोई चारा नहीं। निराशा जीवनी शक्ति का ह्रास करता है, जो जीवन जीने की कला नहीं जानता उनके लिए निराशा एक यातना है। प्रसन्नता आशावादिता और क्रियाशीलता में है। क्रियाशीलता मनुष्य का प्रथम और अनिवार्य कर्तव्य है। क्रियाशील व्यक्ति को निराशा होती भी नहीं। कुछ करते रहने की अपेक्षा निठल्ला बैठे रहना अधिक कष्टप्रद होता है। सदा प्रसन्न रहना और उत्साहपूर्ण होना अधिक लाभदायी है। अच्छे दिनों की अपेक्षा बुरे दिनों में उत्साह अधिक फलदायी होता है। जीवन जीने का सर्वोत्तम तरीका है एक साथ एक दिन का जीवन जीना, हम त्रुटि यह कर देते हैं कि आज के वर्तमान में नहीं जीते, कल की चिंता में दिन व्यतीत कर देते हैं। भविष्य देखो तो किन्तु आशा भरी दृष्टि से देखो। आशा भरी दृष्टि से देखोगे तो निराशा आयेगी ही नहीं। सुखमय जीवन जीने की कला का यही आधार है।