हम निष्पाप रहे पवित्र और सहृदय के रहे। इसके लिए हमें एक नियम बना लेना चाहिए ताकि आत्म विश्लेषण और आत्म शोधन होता रहे। हमें प्रतिदिन रात को सोने से पहले इस पर चिंतन अवश्य करना चाहिए कि पूरे दिन तिकड़म, धोखा और झूठ के द्वारा किसी को पीड़ा तो नहीं पहुंचाई? यह पूरी तरह सच है कि तेजी से भागते जीवन में थोड़ी देर के लिए रुक कर अपने मन से संवाद किया जाये तो मन सब कुछ सच-सच बता देता है। हमारे ऋषियों मुनियो ने आनन्दपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रायश्चित करने का उपाय बताया है, जिसमें सर्वप्रथम जिसके साथ आपने गलती की हो, धोखा-छल या फरेब किया हो उसे जाकर बता देना कि मेरे द्वारा आपके साथ अमुक कार्य गलत हो गया है, मुझसे पाप हो गया है। यदि ऐसा करना सम्भव न हो सके तो मन में यह ठान लेना चाहिए कि मैं अब आगे से कोई भी ऐसा कार्य जो अनैतिक हो, असंविधानिक हो, अधार्मिक हो किसी भी परिस्थिति में किसी के भी साथ नहीं करूंगा। गलतियों की खुलेआम स्वीकार्यता प्रायश्चित यज्ञ है। ऐसा न करके जीवन पर्यन्त की गई गलतियों को लेकर मन में पश्चाताप होता रहेगा, जो जीवन को कष्टदायी बना देगा।