यह सच है कि इस दुनिया में हर व्यक्ति खुश रहना चाहता है। इस मानव स्वभाव में विचित्र कुछ भी नहीं है। खुशी के प्रति मानव की चाहत सनातन है, परन्तु प्रश्न यह उठता है कि इंसान आखिर क्या करें कि वह हमेशा खुश रहे और उदासी का साया कभी उसके जीवन में दुख की सौगात लेकर न आये। गौर से देखे तो यह समझते देर नहीं लगती कि हमारा खुश होना और दुखी होना हमारी मनोस्थिति पर निर्भर करता है। मन में उमंग हो और सब कुछ अच्छा चल रहा हो तो हम स्वयं को खुशी से भरपूर महसूस करते हैं, किन्तु जब मन विषाद से भरा हो, दर्द हो और कुछ भी आपकी सोच के अनुकूल नहीं हो रहा हो तो फिर मन उदासियों से भर जाता है अर्थात इंसान का मन उसकी खुशियों की चाबी के रूप में काम करता है। इसका आशय यह है कि खुश रहने के लिए अपने मन को समझाना होगा। गौतम बुद्ध का कथन है कि ‘खुश रहना एक कला है और इसके लिए बीते हुए कल पर सोचना बंद करना होगा तथा साथ ही दूसरों से अपनी तुलना पर रोक लगाना होगा। बीती घटनाओं पर पश्चाताप करने तथा दूसरों के खूबसूरत दर्पण में अपनी छाया को ढूंढने से मन के भाव कसैले हो उठते हैं।