कहा जाता है कि ‘ईश्वर की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता’ इस वाक्य को पुरूषार्थहीन व्यक्तियों ने अपना निकम्मापन छिपाने के लिए अपने पक्ष में प्रयोग कर लिया है कि हम तो बेबस हैं, लाचार हैं, करने कराने वाला तो ईश्वर है। यदि हम कुछ पुरूषार्थ नहीं कर पा रहे हैं तो यह ईश्वर की ही इच्छा है, वह हमारे सामने परिस्थितियां ही ऐसी पैदा कर रहा है कि हम कुछ कर ही न पायें। सब कुछ तो उसी की इच्छा से हो रहा है। हमारा दोष इसमें किंचित भी नहीं, जबकि यह उक्ति इस अर्थ में ली जानी चाहिए कि कर्मशील और आस्तिक व्यक्तियों के आपत्ति काल में धैर्य बनाये रखने के लिए प्रेरणा स्रोत है कि घबराओ मत जो कुछ हो रहा है वह ईश्वर की जानकारी में है, हमारे प्रारब्धानुसार हो रहा है। हमें यह शंका नहीं करनी चाहिए कि प्राप्त दुख अकारण ही ईश्वर की अनभिज्ञता में आया है, क्योंकि ऐसा कोई देश काल अथवा वस्तु नहीं कि जिस देश में, जिस काल में, जिस वस्तु में ईश्वर न हो। आज जो कुछ भी घटित हो रहा है ईश्वर के साक्षीत्व में हो रहा है, ईश्वर के न्याय के अनुसार हो रहा है, हमारे पूर्व कर्मों के आधार पर निर्मित हमारे प्रारब्ध के अनुसार हो रहा है। जो कुछ भी प्राप्त हो रहा है, हमारी पात्रता के अनुरूप हमें प्राप्त हो रहा है। यदि हमारी पात्रता में कोई न्यूनता है तो उसके दोषी हम हैं। ईश्वर को दोष देना हमारी अज्ञानता है।