कई अच्छे गृहस्थ है, पति-पत्नी में आपस में सच्चा प्रेम है, अच्छे सम्बन्ध हैं। अपने उस प्रेम को वे प्रकट भी करते हैं। स्वयं को दो शरीर एक प्राण कहते हैं, किन्तु उन्हें यह स्मरण रखना चाहिए कि ऐसा कह देना तो बहुत सरल है, किन्तु व्यवहारिक रूप में ऐसा हो जाना बहुत कठिन कार्य है, क्योंकि आपका मन है, आपकी बुद्धि है, आपकी धारणाऐं हैं, आपके विचार है, आपकी कुछ कल्पनाएं हैं। आप दोनों अलग-अलग जिस वातावरण में बड़े हुए हैं, उस वातावरण का प्रभाव आप दोनों पर होगा। माता-पिता अलग-अलग है, उनके दिये संस्कार भी अलग-अलग होते हैं। बुद्धिमान गृहस्थ यह सब कुछ रहते आपस में अच्छा सामंजस्य बैठा लेते हैं, परन्तु एक लोक व्यवहारिक सत्य यह भी है कि हमें दूसरे का धन अपने से अधिक दिखाई देता है और बुद्धि अपनी अधिक मालूम पड़ती है। बहुधा हमें यह लगता है कि हम सबसे अधिक बुद्धिमान है। इस मानसिकता को लेकर आप एक साथ दाम्पत्य जीवन में आते हो। हमारी संस्कृति में गृहस्थ जीवन को बड़ी प्रतिष्ठा दी गई है। गृहस्थ जीवन में आपको अपने जीवन साथी को बदलने का प्रयास नहीं करना चाहिए, बल्कि अपने साथी के लिए स्वयं में बदलाव लाने का प्रयास करना है। प्रेम इसी को कहा जाता है। प्रेम कभी अधिकार नहीं जमाता वह तो समर्पण करता है। यदि आप अधिकार जमाते हैं अपने जीवन साथी पर तो वह कुछ और है प्रेम नहीं। साथी के विचारों को सम्मान तो देना ही चाहिए। यही हमारी सुन्दर संस्कृति है। करवाचौथ का यही संदेश है।