जब यह कहा जाता है कि यह दुनिया अच्छी है तो ऐसा कहने का तात्पर्य यह होता है कि इस दुनिया में मनुष्य मनुष्य का सम्बन्ध अच्छा है और जब हम यह कहते हैं कि यह दुनिया बुरी है तो इसका अर्थ यही है कि मनुष्य मनुष्य का सम्बन्ध बुरा है। इस संदर्भ में हम यह सोचे कि मनुष्य के सामाजिक सम्बन्ध का आधार क्या होना चाहिए। मनुष्य के सोचने और कार्य करने में बहुत गहरा सम्बन्ध है। मनुष्य जैसा सोचता है उसी के अनुसार आचरण करता है। जब सोच सशक्त होती है तो उसे हम विचार कहते हैं। तर्क पूर्ण विचार ही दर्शन का रूप ग्रहण कर लेता है। संसार को महान बनाना ही प्रत्येक दर्शन की आधारशिला है। अतीत से आज तक हमारों दर्शन उद्भूत होकर नष्ट हो गये। आज जिस दर्शन को मानकर हम जी रहे हैं उससे यदि हमारा जीवन कष्टमय है तो इसका अर्थ यह हुआ कि हमारे दर्शन में कोई आधारभूत त्रुटि है। आज के दर्शन का आधार ही भौतिकतावादी है। यदि हमें सुख से जीना है तो अपने इस दृष्टिकोण में परिवर्तन करना ही होगा। इसका त्याग करना ही होगा।