किसी कार्य को क्रियान्वित करने से पूर्व उसकी रूप रेखा हमारे मस्तिष्क में बनने लगती है। उस कार्य की सफलता असफलता बहुत कुछ हमारे विचारों पर ही निर्भर करती है। अत: विचारों को पुष्ट और परिपक्व करने के उपरान्त ही उन्हें कार्य रूप में परिणित करना ही हितकर होता है।
यही कारण है जो लोग बिना सोचे समझे किसी महत्वपूर्ण कार्य को करने लगते हैं वे शीघ्र ही मुंह की खाते हैं और कार्य को अधूरा छोड पलायन कर जाते हैं। इसीलिए कहा गया है कि बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय। विचारों से ही लोगों के हृदय परिवर्तित किये जा सकते हैं, विचारों का प्रभाव निश्चित रूप से हमारे आचरण पर पड़ता है। जैसा हम सोचते हैं वैसा ही करते हैं। अत: उत्कृष्ट विचार एवं चिन्तन हमारे चरित्र के उन्नायक है।
विचारों का परिष्कार एवं परिमार्जन सत्साहित्य और सत्संगति से होता है। अत: हम अपने व्यस्त जीवन में थोड़ा समय स्वाध्याय और सत्संगति के लिए अवश्य निकाले।