मौत क्या है? मौत वह है, जो जिन्दगी को पत्ते की भांति तोड़कर बिखेर देती है। फिर वह पत्ता (व्यक्ति) उस घर की डाल पर नहीं लगता। किसी दिन देख लेना तुम्हें ऐसी नींद आयेगी, तुम जाग न पाओगे। दुनिया तुम्हें जगायेगी, दुनिया आवाज देगी- ‘जागो, उठो, बोलो तो सही’, लेकिन तुम बोल न पाओगे।
हम भी गुस्ताखी करेंगे, एक दिन दोस्त पैदल चलेंगे और हम कंधों पर सवार। कन्धों पर लेकर ही चलेंगे यह निश्चित नहीं कहा जा सकता, क्या पता मौत कैसी हो? फिर किसके कंधों पर चलेंगे, यह नहीं कहा जा सकता। बूढ़े लोग जवानों के कंधों पर यह तो स्वाभाविक है, परन्तु कभी बूढ़े कंधों पर जवान भी हुआ करते हैं, कुछ नहीं कहा जा सकता.. जीवन के बारे में।
जिन्दगी क्या है, बड़ी विचित्रता है इसमें, इसीलिए नसीहत दी जाती है कि मौत किसी की भी हो उससे कुछ शिक्षा लेनी चाहिए। आदमी को मौत भी शिक्षा देती है, पीड़ा भी शिक्षा देती है, ठोकर भी शिक्षा देती है और देखा जाये तो ठोकर ही इंसान को जगाती है।
किसी कवि ने सही कहा है “जो व्यथाएं प्रेरणा दे उन व्यथाओं को दुलारों कठिनाईयों से जूझकर जीवन को निखारों, पेड़ कट-कट कर बढ़ा है, दीप बुझ-बुझ कर जला है। मृत्यु से जीवन मिले तो आरती उसकी उतारो। मौत भी तो नया जीवन देकर जाती है हम सबको।