मनीषी और हमारे शास्त्रों ने परोपकार करने को मनुष्य मात्र के लिए जीवन में बहुत अनिवार्य बताया गया है। परोपकार के महत्व को समय-समय पर रेखांकित किया जाता रहा है। परोपकार करने से आपका वर्तमान और परलोक दोनों सुधरेंगे। अगला जन्म हर प्रकार से अच्छा होगा। अनेक प्रकार के सुख प्राप्त होंगे।
इसके साथ-साथ इस जन्म में भी आपका आनन्द तत्काल बढेगा, आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा तथा दीर्घायु प्राप्त होगी। परोपकार दो प्रकार से किया जाता है। एक निष्काम भाव से तथा दूसरा सकाम भाव से। निष्काम से तात्पर्य मोक्ष प्राप्ति के लिए और सकाम का अर्थ है सांसारिक सुख प्राप्ति के लिए। प्रत्येक व्यक्ति का स्तर इतना ऊंचा नहीं होता कि वह मोक्ष को समझ सके।
मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से सारे काम कर सके। सामान्य मनुष्य को चाहिए कि भले ही वह सांसारिक सुख और कीर्ति के लिए ही करे परोपकार अवश्य करना चाहिए, क्योंकि उसका यह जन्म तो सुख से बीतेगा ही अगला जन्म भी सुखमय होगा। अत: जितना सम्भव हो परोपकार तो अवश्य करे, परन्तु अतिस्वार्थी बनकर दूसरों की हानि तो कदापि न करे अन्यथा उसका यह जन्म अपकीर्ति में बीतेगा और परलोक भी बिगड जायेगा।