जैसे दुनिया को पकड़ा था वैसे ही छोड़ दिया जाये। जीवन में एक रस्म थी पकडऩे की जब विवाह हुआ। फिर एक रस्म आती है त्यागने की, छोडऩे की, तब वानप्रस्थ अवस्था आती है। उस समय यह ध्यान रखना कि एक पांव आपका घर गृहस्थी में रहे और एक पांव वानप्रस्थ में।
उस समय समाज के लिए कुछ रचनात्मक योगदान करें। घर गृहस्थी को अपने अनुभवों से प्राप्त दिशा-निर्देष व परामर्श तो दे सकते हैं, परन्तु फंसना नहीं।
बच्चे फंसाये रखना चाहेंगे, परन्तु आप उस समय केवल उन्हीं के नहीं समाज और देश के भी हैं। ऐसे समय संतुलन बनाये रखना आपके बुद्धि कोशल पर निर्भर करेगा। आसक्ति के धागों से न बंधे, सेवा तथा प्रभु सुमरिन में भी समय व्यतीत करें।