संसार के काम कभी पूरी नहीं होते अपितु काम करने वाले स्वयं ही पूरे होकर चले जाते हैं। यह काम सदैव अधूरा ही रहता है। इस गृहस्थाश्रम रूपी मंच पर आपसे पूर्व जो भी आपके पूर्वज आये थे, जब तक वे गृहस्थाश्रम में रहे, तब तक यही प्रयत्न करते रहे कि मैं काम को पूरा कर दूं और रात-दिन काम में लगे रहे, किन्तु उन्होंने क्या अपने जीवन में काम पूरा किया। लाख प्रयास करने पर भी काम अधूरे रह ही गये। यदि वे पूरा कर गये होते तो तुमको आज करने को कुछ शेष नहीं रहना चाहिए था। उनके पश्चात तुम्हें भी करते-करते पर्याप्त वर्ष हो रहे हैं फिर भी काम अधूरा है और अधूरा ही रहेगा। फिर क्यों नहीं अपने परलोक को संवारने-सुधारने के लिए भगवान की भक्ति में भी अपना समय लगाते ताकि मृत्यु के समय कोई पछतावा न हो। जीव को समझाने के लिए किसी कवि ने उसकी नियति के संदर्भ में कितना सटीक चित्रण किया है ‘यह चमन यूं ही रहेगा और हजारों नामवर, अपनी-अपनी बोलियां सब बोलकर उड़ जायेंगेÓ। भाव यह है कि यह संसार रूपी उण्वन ऐसे ही चलता रहेगा, हां परिन्दे (प्राणी) आते जायेंगे और अपने-अपने कर्म करके चलते जायेंगे। यह क्रम अनन्त काल से चल रहा है और आगे भी ऐसे ही चलता रहेगा।