धर्म शास्त्रों में जिस हंस नाम की चर्चा की गई है, वह क्या है। हंस का अर्थ है आत्मा। हमारे संतों ने कहा कि मान सरोवर में हंस रहते हैं अर्थात सहस्रधार के भीतर जो आत्मा रूपी हंस निवास करता है वह मोतियों को अर्था सार तत्व को चुगता है। जो उस हंस (आत्मा) के ज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं वे संसार के अंदर से मोती प्राप्त कर लेते हैं।
उनको दूध और पानी मिलाकर रखा जाये तो वे दूध को ग्रहण कर लेंगे अर्थात सार वस्तुओं को ग्रहण कर लेंगे और निस्सार को त्याग देंगे। योगियों की भी हंस की वृति होती है। वह सार वस्तु को ग्रहण कर असार का त्याग कर देते हैं और उसका लाभ उनके द्वारा संसार के सामान्य जनों को भी प्राप्त होता है।
सामान्य जन की समस्या यह है कि वह उसे ग्रहण करना चाहता है, जो उसे रूचिकर हो। ग्राह्य अग्राह्य में भेद नहीं करता। समाधान मात्र इतना है कि वह स्वयं की आत्मा से निर्देश प्राप्त करे, जिससे उसे सार एवं असार की पहचान हो सके।