विभिन्न मत मतान्तरों में स्वर्ग की परिभाषा भिन्न-भिन्न है। स्वर्ग को कुछ मतवाले बैकुंठ धाम में, कोई तीसरे पांचवे, सातवे आसमान में मानते हैं। यह भी मान्यता है कि स्वर्ग या जन्नत में बाग-बगीचे, झरने, नहरे और सुहाना मौसम होता है। खाने-पीने की कोई रोक-टोक नहीं। हूरे अथवा अप्सराये सेवा में रहती है। नाच-गाने करती हैं और न जाने क्या-क्या कल्पनाएं की जाती हैं, किन्तु स्वर्ग-नरक की परिभाषा बड़ी सरल है।
जहां सुख है, वहां स्वर्ग है। सुख विशेष का नाम स्वर्ग है। इसके विरूद्ध जहां दुख विशेष है वहां नरक है। स्वर्ग-नरक और कहीं नहीं इसी संसार में है।
जहां सुख-सुविधाएं प्राप्त हो, कोई कष्ट न हो, संतान आज्ञाकारी हो, परिवार में मेल-मिलाप हो, एक-दूजे से प्रेम हो, आदर-सम्मान हो, समझो वही स्वर्ग है। वह घर स्वर्ग है, जहां प्रेम, सहानुभूति तथा परस्पर विश्वास हो। जिस घर में धर्मानुसार मांगलिक कार्य, यज्ञादि होते हो, जो परोपकार को अपना धर्म समझते हो, वही घर स्वर्ग है। जहां इसके विपरीत हो वह घर नरक बनता है।
जहां धर्म है, वहां स्वर्ग है, जहां अधर्म है, वही नरक समझना चाहिए। स्वर्ग-नरक यहीं है इसी धरती पर कहीं और नहीं।