हे प्रभो कितने जन्मों तक भटकने के बाद यह मनुष्य का चोला मिला है। मोह-ममता के कारण अनेक योनियों से गुजरना पड़ा है। तेरी कृपा से मनुष्य शरीर प्राप्त हुआ है, मुझमें वैराग्य जागृत करना। मुझे ऐसा ज्ञान और विवेक प्राप्त हो कि जिसे पाकर मैं अपने कर्तव्य तो निभाऊं, परन्तु मोह-ममता मेरे मन में जागृत न हो। हे प्रभो ऐसी शक्ति दो कि आपके प्रति मेरी आस्था मेरा विश्वास कमजोर न पड़े, मैं अपनों के प्यार में पड़कर, गुनाह न करूं, परन्तु अच्छे संस्कार और मर्यादा अवश्य देकर जाऊं। यह दुनिया मुझसे छूट जाये तो छूट जाये, परन्तु तेरा धाम मुझे प्राप्त जाये। मृत्यु के समय सच्चे लोगों को बड़ा संतोष मिलता है कि बहुत साधन तो हमारे पास नहीं बन पाये, परन्तु हमारे मन की चादर बेदाग है। अपनी झोली में पाप बटोर कर नहीं जा रहे हैं। प्रभु के समीप जाकर सिर लज्जा से नहीं झुकेगा, परन्तु ऐसे लोग भी हैं, जो जीवन के अन्तिम क्षणों में अशांत रहते हैं कि जीवन में साधन-सुविधाएं तो बहुत एकत्र की, परन्तु घिनौने कर्मों से झोली भर गई। इसलिए कर्म ऐसे करो कि जीवन की संध्या में कोई पछतावा न हो।