यह एक सच्चाई है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी घटित हो रहा है जो दुख या सुख मैं भोग रहा हूं वह सब मेरे पूर्व में किये कर्मों का ही फल है, परन्तु हम इस सत्य को ही भूले बैठे हैं। दुखों में हम या तो परमात्मा के न्याय पर ही उंगली उठाने लगते हैं अथवा जिन्हें हम अपने दुखों का कारण अथवा निमित्त मानते हैं, उन्हें कोसना आरम्भ कर देते हैं। दोनों ही बातें गलत है। मनीषियों का वचन है कि छ: चीजें जीवन-मरण, लाभ-हानि और यश-अपयश ये परमात्मा के हाथ है इन पर मनुष्य का कोई वश नहीं है। यह आधा सच है, क्योंकि परमात्मा ने हमें कर्म करने की स्वतंत्रता प्रदान की है यह हमारे ऊपर है कि हम कर्म अच्छे करे या बुरे। इन्हीं कर्मों के आधार पर हम आयु भोग प्राप्त होता है जीवन में लाभ-हानि, धन, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और यश-अपयश, मान-अपमान की प्राप्ति होगी है। परमात्मा तो मात्र न्यायाधीश की भूमिका में है, वह जैसा हमारा कर्म होगा, उसी के अनुसार हमें यह सब प्राप्त करायेगा न कम न अधिक। कर्म करने से पहले क्या किया जाये क्या न किया जाये यह हमारे हाथ में हैं, किन्तु करने के पश्चात फल भोगने में हम पराधीन हो जाते हैं। इसीलिए यश-अपयश आदि छ: चीजों पर हमारा कोई अधिकार नहीं रह जाता।