एक रिक्शा चालक सुबह से शाम तक कितना परिश्रम करता है, किन्तु उसे अपने परिवार के भरण-पोषण में अपनी सीमित आय में बहुत कठिनाईयां आती हैं। एक आदमी ने मौखिक जमा खर्च किया। वाणी से ही लाखों के सौदे किये, ले-बेच की और शाम को करोड़ो रूपये गिन लिए। लाभ-हानि के कर्म तो दोनों कर रहे हैं, किन्तु दोनों के भाग्य अलग-अलग हैं अर्थात पूर्व में दोनों ने कर्म अलग-अलग किये हैं। कर्म और भाग्य दोनों जुड़े हुए हैं। कर्म और भाग्य अलग-अलग नहीं हैं। भाग्य तो आप बनाते हो, क्योंकि कर्म आप करते हो। आप निष्क्रिय होकर बैठे हैं, आलसी हो गये हैं, अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान नहीं हैं तो एक समय अवश्य पछताना पड़ेगा। उस समय यदि हम यर्थाथ को समझ लिया होता कि अपने भाग्य का विधाता आप स्वयं है तो अकर्मण्य होकर क्यों बैठते। आपको भगवान ने कर्म योनि प्रदान की इसके महत्व को समझे और ऐसे अच्छे कर्म करे कि आगामी जन्मों में दुर्भाग्य का सामना न करना पड़े।