भगवान महावीर कहते हैं कि संसार के समस्त गीत विलाप स्वरूप हैं। समस्त नृत्य विडम्बना स्वरूप, समस्त आभूषण भार स्वरूप और समस्त कामनाएं दुख स्वरूप हैं। संसार में जो भी सुन्दर, सरस, सुखद और मनोरम दिखाई देता है वह सब कुछ दिखने भर को है। यहां सौंदर्य की तह के तले असौंदर्य सरस की तह के तले नीरस, सुखद की तह के तले दुखद और मनोरम की तह के तले अमनोरम (भयानक) छिपा है। यहां जिसे गीत माना जाता है वस्तुत: वह गीत नहीं है। गीत के गर्त में अगीत छिपा है, विलाप छिपा है, गीत के स्वर पूरे भी नहीं हो पाते कि विलाप की कर्कशता उभर आती है। व्यक्ति नाच पूरा भी नहीं कर पाता कि कोई न कोई विडम्बना आ खड़ी होती है। समस्त आभूषण भार हैं। पग-पग पर यह सिद्ध होता है कि जिसे आभूषण माना गया था, आभूषण मानकर जिससे कंठ सजाया गया था वही आभूषण मौत का सामान बन जाता है। भगवान महावीर ने मानवता को अहिंसा, अपरिग्रह तथा अचौर्य का ऐसा मंत्र दिया कि दुनिया यदि इसका पालन करने लगे तो हर व्यक्ति मानवता का प्रतीक बन जाये, प्रत्येक में ऐसी चेतना जागृत हो जाये, विवेकशील हो जाये कि सारे विवाद समाप्त होकर चहुं ओर सुख-शान्ति का साम्राज्य स्थापित हो जाये।