तन-मन को स्वस्थ, सुरक्षित एवं जीवन की गौरव गरिमा की वृद्धि के लिए संयम का पालन अनिवार्य है, संयमी व्यक्ति रोगग्रस्त नहीं होता। संयम करने से शरीर में बल-बुद्धि की वृद्धि होती है, मन प्रसन्न बना रहता है।
आज का व्यक्ति अस्त-व्यस्त असंयमपूर्वक जीवन जीता है। नियम से चलने में उन्हें झंझट का अनुभव और नित्य की दिनचर्या में संयम भार की तरह लगता है, नासमझी के कारण चिकित्सा, दवाई के पीछे मूल्यवान जीवन का क्षण-क्षण नष्ट कर देते हैं। समय रहते जो संयमित जीवन जीने की कला सीख जाते हैं वे ही स्वच्छता प्रसन्नता प्राप्त करते हैं।
नूतन शक्ति की प्राप्ति संयम द्वारा ही सम्भव हो पाती है। छिद्रयुक्त घड़े में जिस प्रकार पानी एकत्रित होना असम्भव है, उसी प्रकार असंयमित व्यक्ति के शरीर में शक्ति का संरक्षण और सुरक्षा प्राय: असम्भव ही होता है, क्योंकि उसकी शक्ति असंयम के कारण निरन्तर क्षीण होती रहती है और वह निस्तेज रोगी बना रहता है। वह अपने जीवन की कब्र स्वयं खोदता है।
संयम जीवन में सुख समृद्धि, शान्ति, सुरक्षा तथा कल्याण प्रदान करता है। ‘निरोगी काया’ जिसे प्रथम सुख माना गया है का सपना संयम द्वारा ही सम्भव हो पाता है।