Friday, May 17, 2024

महिलाएं भी फंस रही हैं नशे के चंगुल में

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महिलाओं में नशाखोरी की आदत एक आधुनिक बीमारी है। अब तक केवल पुरूष ही उसकी लत से ग्रस्त माने जाते रहे हैं लेकिन बराबरी का दावा स्त्रियों से जो न कराये थोड़ा है।
बड़े शहरों में महिलाओं में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है। नशाखोरी को आधुनिकता का सिंबल माना जाने लगा है। लाल पेंटेड लंबे नाखूनों में शराब से छलकता ग्लास उनकी अल्ट्रामेड होने की छवि मुकम्मल जो करता है।

यह सच है कि वर्जित फल चखने का अपना ही आनंद होता है, शायद इसीलिए वर्जनाओं व निषेधों को तोड़ते हुए नारी फख्र महसूस करते हुए असीम आनंद उठाती है। आजकल की कामकाजी, आत्मनिर्भर व अकेली या बगैर विवाह किये ब्वॉयफ्रेंड के साथ रहने वाली कई स्त्रियां पहले तनाव और परेशानियां दूर करने के लिए या महज़ ब्वॉयफ्रेंड का साथ देने के लिये पीना शुरू करती हैं। धीरे-धीरे यह उनकी आदत बन जाती है और तब वे शराब नहीं बल्कि शराब उन्हें पीने लगती है। अकेले रहने या सामाजिक बंधनों को तोड़ कर रहने के कारण वे परिवार और रिश्तेदारों से अक्सर कट कर रहती हैं। ऐसे में उन पर नियंत्रण होता है, न किसी का डर। वे इस आत्मघाती प्रवृत्ति की दास बन जाती हैं।

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एक सुखी परिवार की संस्कारगत महिला कभी नशा करने की बात नहीं सोचेगी। ये परिस्थितियां और इच्छा शक्ति की कमी ही है जो उन्हें नशे के गर्त में ढकेल देती हैं। घर में बच्चे हों, बुजुर्ग हों तो महिला उनकी देखरेख में व्यस्त रहती है। उनसे हंसबोल कर वक्त कैसे गुजरता है, पता नहीं चलता।

जब आर्थिक तंगी न हो, बच्चे बड़े होकर अपनी जि़ंदगी से उन्हें निकाल दें, पति महोदय पैसा कमाने की मशीन बनकर रह जायें, घर में कोई कहने सुनने वाला न हो, ऐसे में अकेलापन और बोरियत दूर करने के लिये या कोई गम गलत करने, अवसाद से बचने के लिये भी कोई महिला नशे की ओर आकृष्ट हो सकती है।

हाई सोसायटी में पीना आधुनिकाओं के लिये अदब बन गया है। इस सेटेलाइट युग में सेटेलाइट के जरिये जब घर-घर में टी वी चैनल्स पर अद्र्धनग्न बार्बी डाल जैसी विग के रेशमी बालों को लहराती नकली पलकें उसी अंदाज में झपकाती, नशे मंव लडख़ड़ाती ऊल जलूल हरकतें करती हैं तो वे कुमारियों, महिलाओं को बड़ी आकर्षक लगती हैं। कहीं उनके अंतर्मन में यह ‘आइडियल इमेज जम जाती है। शराब के प्रति बड़े-बूढ़ों के विचार उन्हें दकियानूसी और पुरातनपंथी लगने लगते हैं। संस्कारगत घृणा और डर उनके मन से निकल जाता है।

स्त्री की शारीरिक संरचना के कारण शराब उसके लिये ज्यादा नुकसानदेह हो सकती है। उसके होने वाले बच्चे पर इसका दुष्प्रभाव पड़ सकता है। कई बार अपनी इस कमजोरी को अपराध समझ कर वह अपराधबोध से ग्रस्त रहने लगती है। वह एक नॉर्मल जिंदगी इसीलिए नहीं गुजार पाती। उसके नशे से मुक्ति पाने के रास्ते भी इसीलिये बंद हो जाते हैं चूंकि अपनी जिदंगी के इस शर्मनाक वाकये को उजागर करने से वह झिझकती है।

जब वह अपने को बोल्ड समझकर शराब पीना शुरू करती हैं तो उसके इलाज में झिझक कैसी। यह एक अजब विरोधाभास है। शराब की लत न पाप है, न अपराध। इसे एक बीमारी ही समझा जाए और अन्य मानसिक रोगों की तरह बेझिझक होकर ही स्त्रियां इसके इलाज के लिए मन:चिकित्सक से परामर्श लें। अपनी विल पावर बढ़ायें, अपना अच्छा बुरा सोचें समझें, जीवन में आनंद प्राप्ति के और भी बहुत से स्वस्थ साधन हैं।
-उषा जैन ‘शीरीं

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