Wednesday, January 22, 2025

महिलाओं को रात में काम करने से मना नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली- उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि किसी भी कामकाजी महिला को यह नहीं कहा जा सकता कि वह रात में काम नहीं करे।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ तथा न्यायमूर्ति जे बी पार्दीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कोलकाता में नौ अगस्त को एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ कथित दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या के मुकदमे में ‘स्वत: संज्ञान’ सुनवाई के दौरान सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर पश्चिम बंगाल सरकार की एक अधिसूचना के बारे में बताए जाने के बाद यह टिप्पणी की।

अधिसूचना में कहा गया है कि महिला डॉक्टरों की रात की ड्यूटी से बचा जा सकता है।

पीठ की अध्यक्षता करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इस अधिसूचना पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि राज्य सरकार को अपने इस फैसले को वापस लेना चाहिए और महिला डॉक्टरों को उनके पुरुष समकक्षों के बराबर काम करने देना चाहिए।

उन्होंने कहा, “ऐसा कैसे हो सकता है? महिलाएं रियायतें नहीं, बल्कि समान अवसर चाहती हैं…महिला डॉक्टर हर परिस्थिति में काम करने को तैयार हैं। राज्य को इसे (अधिसूचना को) ठीक करना होगा। आप यह नहीं कह सकते कि महिला डॉक्टर 12 घंटे से अधिक शिफ्ट में काम नहीं कर सकतीं और रात में नहीं…सशस्त्र बल आदि सभी रात में काम करते हैं, जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं।”

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अगर राज्य सरकार महिला डॉक्टरों को सुरक्षा देने को तैयार नहीं तो केंद्र सरकार उन्हें सुरक्षा दे सकती है।

इस पर पश्चिम बंगाल का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्य सरकार इसे (अधिसूचना) को ठीक करने के लिए अलग अधिसूचना जारी करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि यह केवल एक अस्थायी सुरक्षा उपाय है।

इसी बीच उच्चतम न्यायालय ने कोलकता के आर जी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल की एक स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ नौ अगस्त को कथित दुष्कर्म और उसकी हत्या मामले की ‘स्वत:संज्ञान’ सुनवाई के दौरान मंगलवार को ‘विकिपीडिया’ के रवैए पर कड़ी आपत्ति जताई और उसे पीड़िता का नाम और तस्वीर तुरंत हटाने का निर्देश दिया।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पार्दीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की आपत्तियों पर गौर करने के बाद यह आदेश पारित किया।

पीठ के समक्ष श्री मेहता ने पीड़िता का नाम और तस्वीर न हटाने के विकिपीडिया के रुख पर कड़ी आपत्ति जताई।

शीर्ष अदालत ने विकिपीडिया को निर्देश दिया कि वह निजता और गरिमा के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए पीड़िता का नाम और तस्वीर तुरंत हटा दे।

पीठ ने कहा, “शासनात्मक सिद्धांत यह है कि दुष्कर्म और हत्या की पीड़िता की पहचान का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए विकिपीडिया को शीर्ष अदालत के पिछले पारित आदेश का पालन करना चाहिए।”

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